शान ए आज़ाद हिन्द: महाशय परमानंद

शान ए आज़ाद हिन्द : महाशय परमानंद गिरदावर

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती !!उपकार‘ फिल्म के इस गीत के रचयिता ‘गुलशन बावरा‘ ने सचमुच भारत भूमि को सोना-चांदी, हीरे- मोती की खान बता कर महिमा मंडन किया था, इसमें किसी भी प्रकार के शक की कोई गुंजाइश नहीं है। इस देश में अनेक महापुरुष, विद्वान, विचारक, संत – महात्मा हुए हैं। स्वयं भगवान ने यहां आकर अपनी लीलाएं दिखाई हैं। भारत निस्संदेह वीरभूमि है। अनेक शूरवीर सैनिकों, योद्धाओं की गाथाएं, किस्से और कहानियां स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई हैं। देशभक्तों ने मातृभूमि की आन-बान औ शान के लिए अपनी जान की बाजी लगाई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह उदाहरण देखने को मिला। इसीलिए आज भी उन देशभक्तों और शहीदों के सम्मान में मेले आयोजित होते रहे हैं और देशप्रेम के गीतों द्वारा उन्हें याद किया जाता रहा है।


शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मिटने वालों का बाकी यही निशां होगा।” एक ऐसी ही शख्सियत जो 103 वसंत देखने के उपरांत अभी वर्ष सन् 2023 में हमसे जुदा होकर परलोक गमन कर गयी।उनकी पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व को याद करते हुए गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। उनके जानकार उनके दृढ़ संकल्प , शौर्य, जोश , उत्साह और हौंसले को हृदय से नमन करते हैं ।

वैसे तो फाजिलपुर बादली गुरुग्राम निवासी महाशय परमानंद गिरदावर किसी परिचय के मोहताज नहीं है। महान स्वतंत्रता सेनानी, आजाद हिन्द फौज की अग्रिम पंक्ति का योद्धा, निडर – साहसी, सच्चे देशभक्त, बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे हैं । सुडौल कद-काठी, रंग – रूप उनके आदर्श व्यक्तित्व के परिचायक हैं। ऐसे उत्तम संस्कार इनको विरासत में मिले हैं। उनके जीवन में उतार- चढ़ाव के कई मोड़ आए मगर हर पहलू पर खरे उतरे। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद ये पटवारी बनना चाहते थे । इनके पिता ने कहा कि पुलिस और पटवारी की नौकरी अच्छी नहीं होती। लेकिन फिर भी इन्होंने पटवारी की ट्रेनिंग ली । आज़ादी की ललक ने इन्हें लड़ाका बनने पर मजबूर कर दिया। वहीं से इनके मन में ऐसा देशभक्ति का जोश जगा कि ये ब्रिटिश सेना में भर्ती हो गए। उन दिनों युवाओं में देशभक्ति की भावना चरम सीमा पर थी । ये अंग्रेजों को उनके ही हथियारों से मात देना चाहते थे तथा देश को आजाद कराना चाहते थे। ब्रिटिश -जापान युद्ध में इन्होंने इसीलिए भाग लिया था । सिंगापुर में लड़ाई के दौरान इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इनकी मुलाकात रासबिहारी बोस से हुई। वे अपनी नई फौज बना रहे थे। जापानी सेना ने इन्हें छोड़ दिया और वीर सूरमा परमानंद आजाद हिन्द फौज की अग्रिम पंक्ति के नायक बने।आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजी सेना से लोहा लेने के लिए बर्मा की ओर कूच किया! गिरफ्तार हुए लेकिन भेष बदलकर बच निकले। पुनः अपने गांव में आकर रहने लगे ।

ये फिर से पटवारी बने और कई गांवों की चकबंदी का कार्य किया। गिरदावर बनने के बाद ये नेपाल चले गए और वापिस लौट कर नौकरी से इस्तीफा दे दिया । इसके बाद लकड़ी और पत्थर का कारोबार करने लगे। लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के रोमांचक लम्हे आखिरी सांस तक उनके मन में हिलोरें बन कर ठाठे मारते रहे। उनका जज्बा़ -ए- जोश देखते ही बनता था । ना तो वे अंग्रेजों के आगे झुके और न ही जापानियों के। जोखिम उठाते हुए मौत से भी नहीं डरे। ” संघर्ष ही जीवन है ” इस पंक्ति को साकार कर दिखाया। हर कदम पर अपने किरदार को सही तरीके से निभाया। उनकी देशभक्ति की मिसालें बड़ी अजीब और रोमांचकारी हैं। ऐसे सच्चे देशभक्त को शत् शत् नमन !!

जीत की राहों में दफ़न हो गईं अनगिनत जिन्दगियां।
फिर परमानन्द महाशय भी जी कर कहां जिन्दा रहा !!
सुभाष की तकली पर बुने थे जो खाकी के धागे।
मगर अफ़सोस बाद कोई क़ाबिल सा रफूगऱ ना मिला !!

– डॉ त्रिलोक फतेहपुरी | अटेली, हरियाणा



Join the Manesar.Today Community WhatsApp Group here: https://chat.whatsapp.com/GHNsdX7nzvGGjIo34pJj5Q

Join the Manesar.Today Community WhatsApp Group here: https://chat.whatsapp.com/GHNsdX7nzvGGjIo34pJj5Q

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *