तंबाकू निषेध दिवस | घनाक्षरी छंद

तंबाकू प्रयोग से, घटे बदन का जोश
नशा निकोटिन का चढ़े, हो जाए मदहोश
हो जाए मदहोश, चबाता रहता खन्नी
गिटता रहे खंखार, फैंकता फिरे अठन्नी
कहता कवि तिरलोक, हो गई लत बेकाबू
आया शुभ दिन आज, छोड़ दे अब तंबाकू ।

डॉ त्रिलोक ‘फतेहपुरी’

दारू बीड़ी खैनी नशा जैसे चढ़े शनि दशा
एक बार जो भी फंसा बड़ा पछताएगा,
मोल लेगा परेशानी धन की करेगा हानि
आये जब याद नानी आंसू भी बहाएगा,
बिगड़ेगा जब हाल खाने को मिले ना माल
भटकेगा तंगहाल हाथ भी फैलाएगा,
मूंड माथा फोड़ कर घर को निचोड़ कर
कुनबे को छोड़ कर फुर्र उड़ जाएगा ।

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संभल जा नौजवान मेरा भी तो कहा मान
नशे से हटा ले ध्यान इसी में भलाई है
हो रही है बुरी गत बिगड़ी है तेरी मत
छोड़ दे नशे की लत बुरी ये बुराई है
याद कर अरमान घटा मत दिनमान
अच्छा नहीं मद्यपान बात ये सुझाई है
मन को लगा लगाम भूल जा नशे का जाम
रट ले प्रभु का नाम तेरा वो सहाई हैं ।

– त्रिलोक फतेहपुरी, अटेली, हरियाणा


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