डॉ. त्रिलोक चन्द फतेहपुरी की अनूठी अभिव्यक्ति | दिनांक 23 मई , 2023 वार बुधवार, दिन के ग्यारह बजे :
अकस्मात् दो मेहमान मानेसर टुडे के चीफ एडिटर श्री गोपी कृष्ण बाली गोस्वामी जी और गामा स्किल ऑटोमेशन ट्रेनिंग सेंटर मानेसर के निदेशक श्री नरेन्द्र सिंह यादव मानेसर गुरुग्राम मेरे पुत्र सतीश कुमार के साथ मेरे निवास स्थान गांव फतेहपुर अटेली महेंद्रगढ़ हरियाणा में पधारे। नये आगंतुकों का मैंने गर्मजोशी से स्वागत अभिनंदन किया ! जब मैंने अपना परिचय देना चाहा तो उन्होंने कहा कि आपका परिचय तो हम आपके पुत्र से जान चुके हैं ।
श्री गोपी कृष्ण बाली ने कहा कि हम एक विशेष मिशन को लेकर चलें हैं । दक्षिणी हरियाणा का यह इलाका हर प्रकार से समृद्ध है और लोग भी शिक्षित और सम्पन्न है । विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस दौर में हम निरंतर नये नये आयाम स्थापित किए जा रहे हैं परंतु इस इलाके की खासियत, उपलब्धि, धरोहर प्रायः लुप्त होने के कगार पर है। हमारी युवा पीढ़ी इस इलाके की खासियत से अनभिज्ञ सी जान पड़ती है। अब यह दायित्व विद्वानों,विचारकों , लेखकों आदि पर है कि वे हमारी युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करें और इलाके की पुरातात्विक धरोहर इमारतें, प्राचीन स्मारक, जलाशय, महान् व्यक्तित्व आदि की समय समय पर जानकारी उपलब्ध करवाते रहें । समाचार पत्र पत्रिकाओं, सार्वजनिक कार्यक्रमों, मंचों , सभाओं में इन विषयों की चर्चा करें ताकि हमारी संस्कृति और कला की पहचान सुरक्षित रह सके। इस पीढ़ी के युवाओं को भी प्रेरणा मिले कि केवल इन स्थलों को आनंद और मौज मस्ती का स्थल न माने बल्कि संस्कृति,कला और ज्ञान का केंद्र भी माने।
बातचीत के दौरान चाय का दौर भी जारी रहा। चाय से ज्यादा मेरा ध्यान श्री गोपी कृष्ण बाली और श्री नरेन्द्र यादव जी के दृढ़ समृद्ध विचारों की ओर रहा। उनका यह मिशन जन जाग्रति, जन भावना के अनुकूल लगा। मैंने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि जितना भी हो सकता है मैं आपके इस मिशन का सहयोगी रहूंगा ।
मानेसर निवासी श्री नरेन्द्र सिंह यादव ने अपना परिचय देते हुए बताया कि उन के पिता सेना से रिटायर्ड हैं और उन के साथ उन्हें भी लंबे समय तक हरियाणा से बाहर ही असम, नागालैंड, मणिपुर आदि इलाकों में रहने का, कार्य करने का अवसर मिला है। और वह अब हरियाणा में गामा स्किल ऑटोमेशन ट्रेनिंग सेंटर प्राईवेट लिमिटेड मानेसर के निदेशक हैं। दक्षिणी हरियाणा के इस इलाके की पुरातात्विक धरोहर, खासियत से कुछ परिचित हैं। कुछ स्थानों और महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नामों से परिचित हैं। उन्होंने नारनौल शहर की चर्चा छेड़ दी।
मैंने उन्हें बताया कि नारनौल एक ऐतिहासिक नगर है और प्राचीन स्मारकों के कारण विश्व विख्यात है। च्वयन ऋषि की तपोभूमि ढोसी जैसा पावन तीर्थ स्थल भी नारनौल के पास स्थित है। नारनौल दक्षिणी हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले का मुख्यालय है । अनेक पौराणिक कथाओं में नारनौल का जिक्र आता है। महाभारत काल में भी नारनौल की चर्चा हुई है। एक प्रचलित कथन के अनुसार किसी जमाने में यहां गहरा जंगल हुआ करता था और उस जंगल में शेर रहते थे। क्षेत्रीय बोली के अनुसार शेर को नाहर कहा जाता है इसलिए इस क्षेत्र का नाम नाहरनौल पड़ा और उस जंगल को साफ करके नगर बसाया गया। एक इतिहासकार के अनुसार दिल्ली के शासक अनंगपाल तोमर के रिश्तेदार राजा नून करण ने इस नगर को बसाया था। राजा नूनकरण के समय नारनौल एक व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। 15 वी शताब्दी में नारनौल मुगलों के हाथ से निकलकर सूर अफगानों के नियंत्रण में आ गया था। शेरशाह सूरी के दादा इब्राहिम सूरी यहां आए थे। उनका मकबरा आज भी साक्षात प्रमाण के रूप में नारनौल की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। जिसे पीर आगा के नाम से जाना जाता है। इब्राहिम खान की मृत्यु के बाद उनके पुत्र हसनखान को नारनौल का जागीरदार बनाया। ऐसा भी कहा जाता है कि शेर शाह सूरी का जन्म नारनौल में ही हुआ था।
जब पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई तो यह इलाका अकबर के नियंत्रण में आ गया था और उसने हेमू को गिरफ्तार करने वाले शाह कुली खान को यह शहर इनाम में दिया था और उसी शाह कुली खान ने यहां अनेक इमारतों का निर्माण कराया जिनमें जल महल भी एक है।
श्री गोपी कृष्ण बाली ने हमें नारनौल चलने का सुझाव दिया और हम शीघ्र ही नारनौल के भ्रमण के लिए निकल पड़े।
ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी की परवाह न करते हुए हमने नारनौल शहर में प्रवेश किया। मुख्य मार्ग से होते हुए बस स्टैंड पार किया जहां अत्यधिक भीड़ दिखाई दे रही थी ! लोग इधर-उधर आ जा रहे थे। बसों, मोटर गाड़ियों बाइक आदि के हार्न की पों पों सुनाई दे रही थी। दुकानों और रेहड़ियों पर भी ग्राहकों की भीड़ लगी हुई थी। आम, केले, नींबू , लेसुआ, पपीता, खीरा ककड़ी, टमाटर, खरबूजे, तरबूज और प्याज की रेहड़ियां सड़क पर अतिक्रमण जमाये विराजमान थी। अग्रसेन चौक को पार करके हम निजामपुर रोड़ पर मुड़ गये। तीन किलोमीटर चलने पर हम बाबा खेतानाथ बहु तकनीकी कालेज नारनौल के मुख्य द्वार से प्रवेश किया। गार्ड ने स्वागत के साथ हमारा परिचय एक रजिस्टर में दर्ज किया और हमें आगे जाने दिया ।
अब हम हरियाणा के एक प्रसिद्ध तपस्वी बाबा खेतानाथ द्वारा स्थापित बाबा खेतानाथ बहु तकनीकी कालेज नारनौल के प्राचार्य श्री अनिल कुमार यादव के कार्यालय में पहुंचे और हमारा परिचय श्री नरेन्द्र सिंह यादव ने करवाया। श्री गोपी कृष्ण बाली जी ने प्राचार्य जी से भी अपने मिशन में सहयोग देने बारे में चर्चा की ! जलपान के उपरांत मैंने अपनी एक पुस्तक “बदलू का ब्याह” हरियाणवी कहानी किस्से कालेज के प्राचार्य श्री अनिल कुमार यादव जी को भेंट की और फिर मिलेंगे कह कर हमने विदा ली ।
पुरानी मंडी नारनौल के साथ ही जलमहल बना है। हम शीघ्र ही जलमहल पहुंच गए l! कुछ समय बिताने के बाद हम फिर आगा मोहल्ला में इब्राहिम खान का मकबरा देखने पहुंचे। भीषण गर्मी पसीने से तरबतर दोपहर एक बजे हमने मकबरे में प्रवेश किया। अंदर पहुंचने पर हमें गर्मी से थोड़ी राहत मिली। मकबरे का गुंबद लगभग साठ फुट ऊंचा लगा। थोड़ी शीतलता पाकर नरेंद्र यादव, सतीश कुमार, और गोपी कृष्ण बाली ने सीढियां चढ़ना शुरू किया। मैंने पहले ही मना कर दिया था। पौड़ियां बहुत ऊंची बनी हुई है। लगभग बीस मिनट तक वे ऊपर से गुबंद का निरीक्षण करते रहे फिर नीचे उतर आए । मकबरे की बनावट को देख कर हैरानी हो रही थी। मकबरा देखने के बाद उसके पास बनी मस्जिद तुर्क मान खंडहर के रूप में विराजमान थी। धूप की तेजी के कारण हम बाहर से ही लौट पड़े और अपनी गाड़ी में सवार हुए और शहर के मुख्य मार्ग से होते हुए मेरे निवास स्थान गांव फतेहपुर पहुंचे। मैंने दोनों मेहमानों को एक एक पुस्तक “झलक हरियाणे की“, ” बदलू का ब्याह” भेंट की । इसके बाद वे मानेसर की ओर रवाना हुए।
— डॉ. त्रिलोक चंद फतेहपुरी, अटेली, हरियाणा। दिनांक 23 मई , 2023 वार बुधवार, दिन के ग्यारह बजे
शानदार परिचय