कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के सभी देशवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजय हुआ।
कारगिल की हकीकत
सुनो हकीकत कारगिल के योद्धा वीर जवानों की,
सदियों तक दुनिया गाएगी गाथा उन दीवानों की।
विवेक गुप्ता, विजयंत ने तन-मन अपना वारा था,
वीरेंद्र और दीपचंद के भाल पर तेज करारा था।
आग उगलती घाटी में जा दुश्मन को ललकारा था,
एक-एक दुश्मन को चुन-चुन मौत के घाट उतारा था।
जो काल जीत कर चले गए जय बोलो उन परवानों की,
सदियों तक दुनिया गाएगी गाथा उन दीवानों की।
परम वीर विक्रम बत्रा ने ऐसा कोहराम मचाया था,
गोली गोले बरसा कर घाटी को मुक्त कराया था।
पाजी दुष्ट भेड़ियों को करनीे का मजा चखाया था,
तोलोलिंग की चोटी पर झंडा अपना लहराया था।
विजय पताका फहराई डोर काट बेईमानों की,
सदियों तक दुनिया गायेगी गाथा उन दीवानों की।
मेजर आर एस अधिकारी द्रास सेक्टर छाए थे,
अनुज नय्यर, सोमनाथ तो मातृभूमि मन भाए थे।
सूबेदार भंवरसिंह, संजय वीरगति को पाए थे,
अखिलेश कैप्टन और योगेंद्र लौट के जिंदा आए थे।
अमर निशानी छोड़ गए जय त्रिलोकी बलवानों की,
सदियों तक दुनिया गायेगी गाथा उन दीवानों की।
( जिला – रोहतक )
कृष्णलाल टिटौली के शीशर के जसवीर थे,
सांघी के समंद्र सिंह लाखन के राजवीर थे।
बलवान सिंह जिंदराम नेवी के महावीर थे,
सुरेश कुमार मोखरा के गोपालपुर के जसवीर थे।
विजय समुंदर बोल रहे जय केसरिया परिधानों की,
सदियों तक दुनिया गायेगी गाथा उन दीवानों की।
(जिला – महेंद्र गढ़)
शिवकुमार थे ककराला के गुवानी के लाल सिंह
उन्हानी के परमिंदर गहली के सतपाल सिंह।
हनुमान सिंह कोटिया के दौंगड़ा के खजान सिंह,
वीरेंद्र सिंह गढी रूथल के रामपुरा के राम सिंह।
लेख राम सोहला बोले जीत हुई अरमानों की,
सदियों तक दुनिया गायेगी गाथा उन दीवानों की।
कारगिल का शूरमा
योगेंद्र यादव सेना का सच्चा एक सिपाही है,
टाइगर हिल को जीतने वाला, वह प्रत्यक्ष गवाही है।
अग्नि में तन तपा हुआ जिस्म बना फौलादी है,
प्रचंड ताप और हिमवर्षा, सब सहने का आदी है।
दृढ़ इरादे बुलंद हौसले, पराक्रमी उत्साही है,
कारगिल का अजेय योद्धा, दुश्मन के लिए तबाही है।
कारगिल की चोटी ऊपर दुश्मन छुप कर बैठा था,
देख शौर्य सिंहों का वह मन ही मन में ऐंठा था।
घनघोर अंधेरा होने पर दुश्मन बंकर में सुस्त हुआ,
वीर बहादुर योगेंदर तब चौकन्ना और चुस्त हुआ।
हथगोलों को लगा फेंकने बम से बंकर ध्वस्त किया
सुला मौत की नींद उन्हें अपना पथ प्रशस्त किया ।
बर्फीले तूफान से टकरा अपनी राह बनाई थी,
रस्सी पकड़ अंधेरे में घाटी पर करी चढ़ाई थी।
दुश्मन का चोटी से सीधा हमला धुआंधार हुआ,
लगी बरसने आग गगन से योगेंद्र पर वार हुआ।
खून से लथपथ घायल था फिर भी कदम बढ़ाया था,
अमर तिरंगा कारगिल की चोटी पर फहराया था।
वंदे मातरम् और जयहिंद के नारे गूंज रहे थे,
भारत मां के पूत लाडले माटी पूज रहे थे।
मातृभूमि का सच्चा सेवक देशभक्त कारिंदा है,
सत्रह गोली खाकर भी आज योगेंद्र जिंदा है।
~ श्री त्रिलोक फतेहपुरी, अटेली, हरियाणा ।